आज इस भवन में मनोज वर्मा नर्सरी चल रही है। इसकी दीवारों पर मीरा बाई, सूरदास आदि की काव्य पंक्तियां उत्कीर्ण हैं।इस विशाल भवन के अंदर कबाड़ भरा पड़ा है। पुरानी पुस्तकें, पांडुलिपियां और समाचार पत्र तो कबके कबाड़ियों के हाथों पुनः कागज बनकर नष्ट हो गए होंगे।
जब से इस भवन को नागरी प्रचारिणी सभा को दान में दे दिया गया, तभी से इसके दुर्दिन शुरू गए ।अब यह बताने वाला कोई नहीं है कि इस भवन में आजादी के कितने वर्षों बाद तक हिंदी का कार्य होता रहा था।आज जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं और इस भवन के दान दिए हुए 79 वर्ष हों गए हैं
कोई इस भवन की सुध लेने वाला नहीं है। अभी भी यह संपत्ति नागरी प्रचारिणी सभा के नाम पर है। सभा ने इसे किसी प्रबंधक दे रखा है।उस प्रबंधक ने अपने किसी कारिंदे को यहां बसा रखा है,जो नर्सरी के किराए की रकम कमा रहा है। काशी वालों को शायद ही जानकारी होगी कि नागरी प्रचारिणी सभा का एक भवन हरिद्वार में भी है।जब काशी ही स्थित नागरी प्रचारिणी सभा की ही सुध लेने वाला कोई नहीं है तो हरिद्वार तो बहुत दूर है।श्री स्वामी सत्यदेव परिब्राजक की आत्मा जार जार रो रही होगी कि काश उन्होंने अपने खून पसीने से बनाया विशाल भवन हिंदी संस्था को न देकर आर्य समाज को या गुरु कुल कांगड़ी को ही दे दिया होता तो इसका कुछ तो सदुपयोग हो रहा होता। आखिर हिंदी की ही संस्थाएं क्यों राजनीति का शिकार बन जाती हैं किसी और भाषाओं की क्यो नही? यही हालत मैंने गुवाहाटी स्थित राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति भवन की देखी थी। वहां कम से कम संस्था की सांसें तो चल रही हैं।
दिल्ली की नागरी प्रचारिणी सभा और हिंदी भवन किसी व्यक्ति अथवा परिवार की संपत्ति बन चुके हैं। हम हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने पर आमादा है, संयुक्त राष्ट्र संघ की भी भाषा बनाना चाहते हैं लेकिन जब संविधान ने इसे राजभाषा बना दिया है, लेकिन हम अपनी आंखों के सामने सरकार में राजभाषा की खुलेआम धज्जियां उड़ते देखने को विवश हैं। आजादी के महात्मा गांधी, सरदार पटेल,के एम मुंशी, पुरुषोत्तम दास टंडन और गोपाल प्रसाद व्यास जैसे हिंदी सेवी थे। आज किस हिंदी मठाधीश के पास इतनी बुलंद आवाज है,जो हिंदी के पक्ष में सरकार या संसद में अपनी आवाज उठा सके। गृह मंत्री को, संसदीय राजभाषा समिति के अध्यक्ष के रूप हिंदी के पक्ष में बोलना ही होता है।हम सब जानते हैं कि गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग को छोड़कर अन्य सभी विभागों में कितना हिंदी में कार्य हो रहा है, किसी से छिपा नहीं है। आंकड़ों की खेती तो हम भारत सरकार में कार्य कर चुके सभी कार्मिक करते ही रहे थे।
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